1853 का चार्टर एक्ट क्या है
Charter Act 1853 – इस पोस्ट में हम चार्टर एक्ट ( अधिनियम ) 1853 की विशेषताएं , 1853 चार्टर एक्ट में भारतीयों की समस्या , 1853 चार्टर एक्ट की उप समितिया , 1853 चार्टर एक्ट के दोष के बारे में पढ़ेंगे |

1853 चार्टर एक्ट
- 1833 का जो चार्टर एक्ट था उस समय नेपोलियन ने सब जगह नका बंधी कर दी थी |
- अंग्रेज व्यापारियों ने 1833 के अधिनियम से पहले थोड़ा सा विद्रोह किया था ! इसी प्रकार ईसाई और मिशनरी भी भारत आकर अपने धर्म का प्रचार करना चाहते थे |
- इसी तरह 1853 में भारतीयों ने भी अपना विद्रोह आरम्भ कर दिया था |
- 1853 में एक धारा 87 थी जिसमे भारतीय लोगो को उच्च पदों पर शासन नही करने दिया जाता था |
- 1833 एक्ट के अंतर्ग्रत भारतीयों को भारतीयों को विदेश में जाकर उच्च शिक्षा ग्रहण करने का पूर्ण अधिकार प्राप्र्त हो गया परन्तु उन्हें शिक्षा ग्रहण कर लोटकर आने का बाद अपने ही देश में उच्च पदों पर कार्य करने के लायक नही समजा जाता था जिसके चलते उनके मानव में विद्रोह की भावना ने जन्म ले लिया |
- जब वह भारतीय विदेश से शिक्षा ग्रहण कर के आये तो उनको उच्च पद पर इसलिए नही बिटायागया क्योकि उस समय यहाँ पर काले गोरे का भेद चलता था | यही सबसे बड़ा प्रमुख कारण था की भारतीय विद्रोह की और अग्रसर हो रहे थे |
1853 चार्टर एक्ट में भारतीयों की समस्याए
- इस एक्ट के अन्तर्गतभारतीयों की मांग थी की उनके लिए एक भारतीय कानून बनाने के लिए अलग से विधान मंडल हो |
- इस में बताया गया की जो भी प्रादेशिक सरकार है उनके पास आतंरिक स्वतंत्रता हो यानि किस व्यक्ति को किस पद पर स्थापित करना है उसकी पूर्ण आतंरिक स्वतंत्रता हो |
- भारत पर जो शासन का अधिकार है वो शासन का अधिकार सचिव तथा उसके काउन्सिल का हो |
- भारतीयों को एसा मानना था की जो भी प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन किया जाए उसमे भारतीयों को भी प्राथमिकता दी जाए |
- ब्रिटिश संसद ने 1852 में एक जांच कमेटी का गट्न किया और इस कमेटी को कहा गया की आप भारत में जाकर देखो की जो भारतीय लोग अपनी मांग कर रहे है क्या उसे पूरा किया जा सकता है क्या वो सही है उसमे कोई समस्या तो नही आयेगी इसका पता लगा कर आप अपनी रिपोर्ट हमें जल्द से जल्द पैस करे |
- इस तरह यह चार्टर नियम अधिनियम 1853 मे पास हो गया तथा इसमे निम्न्लिखित बाते लिखि थी जो कुछ इस प्रकार है –
- इस एक्ट के द्वारा भारातिय प्रदेशो तथा उनके राज्य का प्रबंधन कम्पनियो को सोफ दिया गया था |
- इस्ट इंडिया कम्पनी अकेले 20 सालो तक मोनोपोलि के साथ जाकर काम कारेगी |
- ब्रिटिश शासंद किसि भी वक्त कम्पनी का शासन खत्म करके पूरी सत्ता अपने हाथो में ले सकती है |
- कंपनी के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर की संख्या 24 थी उसे घटा कर 18 कर दिया तथा इनमे 6 सदस्यों की नियुक्ती का धिकार ब्रिटिश संसद को दे दिया गया तथा संसद वहा के सम्राट से पूछ कर वहा पर उन 6 सदस्यों को नियुक्त कर देता था |
- बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल के सदस्यों के वेतन का निर्धारण कंपनी स्वयं करेगी तथा इसका वेतन सम्राट खुद देगा |
- संचालक मंडलों से उच्च अधिकारियो की नियुक्ति का अधिकार छीन लिया गया ! तथा इस अधिकार को बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर को सोफ़ दिया गया |
- संसद ने बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर को नियुक्ति के लिए नियम बनाने का पावर दे दिया ! तथा किसको किस पद पर बिटाना है वो संसद तय करेगी |
- सिविल सर्विसेस की परीक्षा का आयोजन लन्दन में किया गया तथा भारतीयों को कहा गया की आप लन्दन आकर इस परीक्षा में भाग लीजिये तथा साबित करिए की आप भी इस परीक्षा में बटने लायक है अर्थार्त नहीं है |
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1853 चार्टर एक्ट की उप समितिया
- न्यायिक उप समिति
- राजनीतिक उप समिति
- वित्तिय उप समिति
- भारत का जो गवर्नर जनरल था वो बंगाल का भी गवर्नर जनरल कहलाने लगा ! इसे 1853 में अलग किया गया तथा कोई भी गवर्नर जनरल एक ही समय में 2 अलग जगह का गवरनर जनरल नहीं रहेगा |
- जब तक गवर्नर जनरल नही बनाया जा सकता है तब तक बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर से अनुमति लेकर कोई भी लेफ्टिनेंट गवर्नर जनरल नियुक्त कर सकता है ! 1853 से लेकर 1912 तक कोई भी गवर्नर जनरल बंगाल के लिए नियुक्त नही हुआ |
- 1859 में पंजाब दूसरा एसा राज्य बना जिसका अपना सवयम क लेफ्टिनेंट गवरनर जनरल था |
- 1833 में एक विधि सदस्य नियुक्त किया गया था जिसे 1853 के चार्टर एक्ट के तहत स्थाई सदस्य घोषित कर दिया गया था ! तथा इसे यह भी शक्ती प्रदान की गई की यह सदस्य बैठक में भी भाग लेगा तथा वोटिंग का भी अधिकार इसे प्रदान किया गया है |
- भारत में पहली बार 1853 के चार्टर एक्ट के द्वारा 100% गवर्नर जनरल की विधाई और कार्यपालिका सम्बन्धी काम थे उनका प्रथकरण किया गया ! इसे प्रथक करने कारण यह था की 1853 का जो चार्टर एक्ट था वह यह चाहता था की भारत में विधाई मंडल बनाने का दौर चल रहा है की भारत में एक अलग से विधान मंडल होना चाहिए इसलिए भारत में विधाई कार्य को अलग कर दिया गया तथा कार्यपालिका कार्य को भी पृथक कर दिया गया ताकी भारत में जो कार्य है वो और बेहतर तरीके से किया जा सके जो अंग्रेजो की सकती पकड़ है वो और मजबूत हो सके इसलिए इस कार्य को अलग कर दिया गया |
- विधि निर्माण के उद्देश्य से 6 और सदस्यों को कांसिल में जोड़ दिया गया इस तरह से परिसर में 1853 एक्ट के अंतर्ग्रत कुल 12 सदस्य हो गए |
- 1853 के एक्ट में एक और प्रस्ताव पारित किया गया की यदि कोई भी विधेयक पास होता है तो वह गवर्नर जनरल के हस्ताक्षर के बिना कानून नही बन सकता है |
- भारतीय विधि आयोग 1853 के चार्टर एक्ट के समय समाप्त हो गया था परन्तु उसने जो अपनी रिपोर्ट दी थी उसके सिफारिश पर इग्लिश ला कमीशन की नियुक्ति की गई ! इसके कुल 8 सदस्य थे तथा इनका जो कार्य था वो भारतीयों के लिए कानून बनाने का था |
- इग्लिश ला कमीशन के 8 सदस्यों ने मिलकर ही इन्डियन पैनल कोर्ट बनाया जिसे भारतीय दंड सहिता के नाम से जाना जाता है |
- दीवानी और फोजदारी के लिए कानून बनाने का कार्य भी इग्लिश ला कमीशन के 8 सदस्यों द्वारा किया गया |
1853 चार्टर एक्ट का दोष
कानून बनाने वाली कान्सुल में कोई भी भारतीय सदस्य नही था और इसका बहुत बड़े स्तर पर विद्रोह किया गया और इन्ही कारणों की वजह से शायद आगे चलकर कंपनी का शासन भारत से ख़त्म कर दिया गया तथा भारत पूर्ण सवतन्त्र रूप से वहा के सम्राट के हाथो में आ गया |
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