मिटटी कितने प्रकार की होती है | Mitti Kitne Prakar ki Hoti Hai

Mitti Kitne Prakar ki Hoti Hai – इस पोस्ट में हम भारत की मिटटी के बारें में पढ़ेंगे | यदि आप भी पढना चाहते है की मिटटी किसे कहते है , मिटटी कितने प्रकार की होती है तथा भारत में कौन कौन से प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती है तो यह पोस्ट आपके लिए महत्वपूर्ण हो सकती है |

Mitti Kitne Prakar ki Hoti Hai
Mitti Kitne Prakar ki Hoti Hai

मिट्टी किसे कहते है | Soil in Hindi

भू–पृष्ट की सबसे ऊपरी परत जो पौधे के वृद्धी के लिए जीवांश , खनिज , पोषक तत्व , जल आदि प्रदान करती है | मृदा या मिट्टी कहलाती है | मृदा शब्द की उत्पति लैटीन के सोलम शब्द से हुई है जिसका अर्थ है – फर्श मिट्टी लाखो वर्षो में निर्मित हुई है |

सामान्यतया मिट्टी कई परतो से मिलकर बनी होती है जिसमे सबसे ऊपर छोटे मिट्टी के कण , सड़े – गले हुए पेड़ पौधे और जीवो के अवशेष होते है | यह परत पौधे की वृद्धी और फसलो के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है |

भारत की मिट्टियाँ कितने प्रकार की होती है

भारत एक विशाल देश है जहां विभिन्न प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती है –

  • 1 जलोढ़ / कांप मिट्टियाँ
  • 2 लाल मिट्टियाँ
  • 3 काली / रेगूर मिट्टियाँ
  • 4 लेटेराइट मिट्टियाँ
  • 5 पर्वतीय मिट्टियाँ
  • 6 शुष्क / मरुस्थलीय मिट्टियाँ
  • 7 दलदल युक्त मिट्टियाँ
  • 8 लवणीय / क्षारीय मिट्टियाँ

Mitti Kitne Prakar ki Hoti Hai

👉 1 जलोढ़ / कांप मिट्टियाँ

जलोढ़ मृदा मूलतः हिमालय से निकलने वाली नदियों के द्वारा लाये गये अवसादो के निक्षेपो से बनी होती है | जिसे कछारी मिट्टी भी कहते है | भारत के उत्तरी मैदानों में जलोढ़ मृदा का सर्वाधिक विकास हुआ है इसके अतिरिक्त तटीय मैदानों एवं प्रायद्वीपीय भारत के नदी बेसिन एवं डेल्टाई भागों में भी यह मृदा पाई जाती है |

इस मिट्टी का विस्तार लगभग 15 लाख वर्ग किमी . तक है | भारत में सबसे अधिक भू–भाग पर जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है | मैदान की कांप को स्थानीय रूप से अप्रभावित होती है , बांगर कहलाती है |

बांगर भूमि में कंकर तथा अशुद्ध केल्शियम कार्बोनेट की ग्रन्थियां पाई जाती है जिन्हें कंकर कहते है | यह मिट्टी नदियों द्वारा लाकर नदी घाटियों , बाढ़ के मैदानों तथा डेल्टाई प्रदेशो में बिछाई जाती है |

इस मिट्टी में सर्वाधिक अधिक मात्रा में पोटाश एवं चुना पाया जाता है | इस मिट्टी में नाइट्रोजन , फास्फोरस तथा वनस्पति के अंश की कमी होती है | फिर भी ये बड़ी उपजाऊ होती है इसका कारण यह है की नदियाँ कई प्रकार के शैल चूर्ण बहा कर ले आती है , जिनमे बहुत से रासायनिक तत्व मिले हुए होते है |

👉 2 लाल मिट्टियाँ

यह भारत की दूसरी प्रमुख मृदा है जिसका विकास दक्कन के पठार के पूर्वी तथा दक्षिण भाग में कम वर्षा वाले उन क्षेत्रो में हुआ है , जहां रवेदार आग्नेय चट्टानें ( ग्रेनाइट और नीस ) पाई जाती है | लाल मिट्टी का विस्तार देश में लगभग 6.1 लाख वर्ग किमी . क्षेत्र पर है |

इस प्रकार की मिट्टी मुख्यतः मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड , तमिलनाडू , कर्नाटक , महाराष्ट्र , आंद्रप्रदेश , छत्तीसगढ , उड़ीसा और झारखंड प. बंगाल , उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ भागो में पाई जाती है |

इन मिट्टियों का विकास ग्रेनाइट , नीस तथा कुडप्पा और विन्धयन बेसिनो तथा धारवाड़ शैलो की अवसादी शैलो के ऊपर हुआ है | इसका लाल रंग लोहे के आक्साइड की उपस्थिति के कारण है | यह मिट्टी स्वभाव में अम्लीय प्रकृति की है |

इस मिट्टी में लोहे , एल्युमिनियम तथा चुने का अंश अधिक होता है | तथा इस मिट्टी में नाइट्रोजन , फास्फोरस , ह्यूमस की कमी होती है | इस मिट्टी के ऊँची भूमियों पर बाजरा , मुगफली तथा आलू की खेती होती है जबकि निम्न भूमि पर चावल , रागी , तम्बाकू और सब्जियां आदी की खेती होती है |

👉 3 काली / रेगूर मिट्टियाँ

इस मृदा का निर्माण ज्वालामुखी विस्पोट के दोरान निकलने वाले लावा पदार्थो ( बेसाल्ट चट्टानों ) के विखंडन से हुआ है | यह भारत की तीसरी प्रमुख मृदा है | इसका सर्वाधिक विकास महाराष्ट्र दक्कन ट्रेप के उत्तरी पशिचमी क्षेत्र में हुआ इसके अलावा यह मध्य प्रदेश के मालवा पठार , गुजरात के कठियावाड प्रायद्वीपीय , कर्नाटक , तमिलनाडू , आंद्रप्रदेश का पठार और छोटा नागपुर के राजमहल पहाडियों में पाई जाती है |

यह मिट्टी कपास की खेती के लिए प्रसिंद है | इसलिए इसे कपासी मिट्टी या रेगूर मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है | इसके अतिरिक्त इसे उष्णकटिबंधीय चेरनोजम और ट्रापिकल ब्लेक अर्थ के नाम से भी जाना जाता है |

उत्तरप्रदेश में इस मृदा को करेल कहा जाता है | इस मिट्टी का विस्तार 5.46 लाख वर्ग किमी . क्षेत्र पर है इस मिट्टी में लोहे , चुने , केल्शियम , पोटाश , एल्युमिनियम , मैग्नीशियम कार्बोनेट की अधिकता पाई जाती है तथा नाइट्रोजन , फास्फोरस तथा जेविक पदार्थो की कमी होती है | इनसे जल धारण करने की क्षमता सर्वाधिक होती है |

अत : जल की अधिकता होने पर ये चिपचिपी हो जाती है तथा सूखने पर इसमें दरारे पड़ जाती है | इसलिए इए स्वत: जुटाई वाली मिट्टी कहते है | इनमे उर्वरकता अधिक होती है अत: ये जड दार फसलो , जैसे – कपास , चना , सोयाबीन , तिलहन मोटे अनाजो आदि |

👉 4 लेटेराइट मिट्टियाँ

इस मृदा का विकास उन क्षेत्रो में होता है , जहाँ उच्च तापमान एवं भरी वर्षा होती है | अधिक वर्षा के कारण जल के साथ चुना और सिलिका का निक्षालन हो जाता है तथा लोहे के आक्साइड और एल्युमिनियम मिट्टी में शेष बचे रहते है |

यह मिट्टी भी साधारणतया लाल रंग की होती है यह मुख्य रूप से पशिचमी घाट के पर्वतों के गिरी पाद क्षेत्रो में एक लम्बी पहाड़ी के रूप में महाराष्ट्र , कर्नाटक , तमिलनाडू , आंद्रप्रदेश का पठार और छोटा नागपुर के राजमहल पहाडियों एवं मेघालय के पठारों में भी पाई जाती है |

उच्च तापमान में आसानी से पनपने वाले जीवाणु ह्यूमस की मात्रा को कम कर देते है जिसके कारण इसमें ह्यूमस , नाइट्रोजन , केल्शियम की कमी पाई जाती है | इस मिट्टी में रबड़ और काफी की फसल के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है | इस मिट्टी में मुख्यत: चाय , कहवा , सिनकोना , काजू ,मोटे अनाज एवं मसालों की कृषि की जाती है |

👉 5 पर्वतीय मिट्टियाँ

इसे वनीय मृदा भी कहा जाता है | इसका विस्तार 2.85 लाख वर्ग किमी . क्षेत्र में पाया जाता है ये नवीं व अविकसित मृदा है जो कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक फेली हुई है |

इस मृदा में पोटाश व फास्फोरस की कमी पाई जाती है तथा जीवाश्म अधिक मात्रा में पाई जाती है | पर्वतीय ढालो पर सेब , नाशपाती आदि फल के वृक्ष उगाये जाते है इस प्रकार की मृदा अम्लीय स्वभाव की होती है |

👉 6 दलदल युक्त मिट्टियाँ

पीट मृदा नम जलवायु में बनती है सड़ी वनस्पति से बनी पीट मिट्टियों का निर्माण केरल तथा तमिलनाडू के आंद्रप्रदेश में हुआ है | इस मिट्टी में जेविक पदार्थ व घुलनशील नमक की मात्रा अधिक होती है तथा पोटाश व फास्फेट की कमी होती है |

यह मिट्टी अम्लीय होती है | दलदली मिट्टी तटीय उड़ीसा , सुंदर वन , उत्तरी बिहार के मध्य भागो में तथा तटीय तमिलनाडू में पाई जाती है | इस मिट्टी में फेरस आयरन होने से इसका रंग नीला होता है | यह मृदा अम्लीय होती है इसमें कार्बनिक पदार्ध की मात्रा 40 से 50 % होती है इस प्रकार की मृदा में मेग्रोव वनस्पति पाई जाती है |

👉 7 शुष्क / मरुस्थलीय मिट्टियाँ

ये मिट्टियाँ 50 सेमी . से कम वार्षिक वर्षा वाले इलाको में मिलती है और भारत के 1.42 लाख वर्ग किमी . भाग में फेली हुई है | इन क्षेत्रो में नगण्य वर्षा व अत्यधिक वाष्पीकरण के कारण मृदा में कम नमी तथा कार्बनिक तत्वों की अल्पता होने ह्यूमस का अभाव पाया जाता है |

अत: इसे कृषि के द्रष्टिकोण से अनुवर मृदा के अंतर्गत रखा जाता है | ये मिट्टी बलुई से बजरी युक्त होती है जिनमे जैविक पदार्थ तथा नाइट्रोजन एवं केल्शियम कार्बोनेट की भिन्न मात्रा पाई जाती है | इस मिट्टी में लवण तथा फास्फोरस की प्रचुर मात्रा होती है तथा जीवाश्म व नाइट्रोजन का अभाव होता है |

👉 8 लवणीय / क्षारीय मिट्टियाँ

बिहार , उत्तर प्रदेश , हरियाणा , पंजाब , राजस्थान , तथा महाराष्ट्र के अपेक्षाकृत शुष्क भागो में लवण तथा क्षारीय मितियाँ पाई जाती है | इस मिति को रेह , कल्लर ,ऊसर , थुर , कार्ल तथा चोपन आदि कई नमो से जाना जाता है |

लवणीय मृदा की कृषि के द्रष्टिकोण से अनुवर मृदा के अंतर्गत रखा जाता है , साथ ही इसमें वनस्पति का भी अभाव भी पाया जाता है | लवणीय मृदा का अधिकतर प्रसार पशिचमी गुजरात , पूर्वी तट के डेल्टाई क्षेत्रो में पाई जाती है |

Final Word – तो इस पोस्ट में हमने पढ़ा मिटटी कितने प्रकार की होती है ( Mitti Kitne Prakar ki Hoti Hai ) उम्मीद करते है यह पोस्ट आपके लिए महत्वपूर्ण रही होगी | कृपया इस पोस्ट को अपने साथियों के साथ भी जरुर शेयर करें | और हमारे अगले पोस्ट की अपडेट पाने के लिए हमसे सोशल मीडिया पर जुड़े |

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